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सत्यार्थ प्रकाश क्यों पढ़ें? Satyartha Prakash Kyon Paden by श्री नीरज विद्यार्थी

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संसार भर में सर्वाधिक बिकनेवाले सत्य-असत्य एवं पाप-पुण्य के निर्णायक महर्षि दयानन्द कृत ग्रन्थ ‘सत्यार्थ प्रकाश‘ क्यों पढ़ें? ‘सत्यार्थ प्रकाश महर्षि दयानन्द सरस्वती की अमर कृति है। इस ग्रन्थ के अध्ययन से लाखों लोगों के जीवन बदल गये, लाखों की कायापलट हो गई। इस ग्रन्थ का और अधिक प्रचार और प्रसार हो, इस लक्ष्य को दृष्टि में रखकर लेखक ने सभी समुल्लासों पर लगभग 700 प्रश्न लिखे हैं। इन प्रश्नों को पढ़कर इनके उत्तर की जिज्ञासा होगी। इन सभी प्रश्नों का उत्तर एक ही स्थान पर ‘सत्यार्थ प्रकाश में प्राप्त होगा, अतः जिज्ञासुओं को इस ग्रन्थ को पढ़ने की इच्छा जाग्रत होगी। ‘सत्यार्थ प्रकाश‘ के मन्तव्यों का जितना यथार्थ बोध होता जाएगा उतना ही मनुष्य सक्रिय होकर मूर्ख से विद्वान्, कमजोर से शक्तिशाली, नास्तिक से आस्तिक, अभिमानी से स्वाभिमानी, भोगी से योगी, रोगी से निरोगी, मांसाहारी से शाकाहारी, कुपात्र से सुपात्र बनता जाएगा।

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Settingsसत्यार्थ प्रकाश क्यों पढ़ें? Satyartha Prakash Kyon Paden by श्री नीरज विद्यार्थी removeA set of 12 books of Ghar Ka Vaidya घर का वैद्य (बारह भागों में) by सुनील शर्मा removeस्वमन्तव्यामन्तव्यप्रकाश Swamantavyamantavyprakash removeThe Manusmriti by Pandit Satyaprakash Beegoo removeDayanad Sukti aur shubhashit महर्षि दयानन्द removeSwami Dayanand ka JIvan Darshan aur 200 Suvachan स्वामी दयानन्द का जीवन दर्शन और 200 सुवचन by श्री चन्द्रशेखर लोखण्डे remove
Imageसंसार भर में सर्वाधिक बिकनेवाले सत्य-असत्य एवं पाप-पुण्य के निर्णायक महर्षि दयानन्द कृत ग्रन्थ ‘सत्यार्थ प्रकाश‘ क्यों पढ़ें? ‘सत्यार्थ प्रकाश महर्षि दयानन्द सरस्वती की अमर कृति है। इस ग्रन्थ के अध्ययन से लाखों लोगों के जीवन बदल गये, लाखों की कायापलट हो गई। इस ग्रन्थ का और अधिक प्रचार और प्रसार हो, इस लक्ष्य को दृष्टि में रखकर लेखक ने सभी समुल्लासों पर लगभग 700 प्रश्न लिखे हैं। इन प्रश्नों को पढ़कर इनके उत्तर की जिज्ञासा होगी। इन सभी प्रश्नों का उत्तर एक ही स्थान पर ‘सत्यार्थ प्रकाश में प्राप्त होगा, अतः जिज्ञासुओं को इस ग्रन्थ को पढ़ने की इच्छा जाग्रत होगी। ‘सत्यार्थ प्रकाश‘ के मन्तव्यों का जितना यथार्थ बोध होता जाएगा उतना ही मनुष्य सक्रिय होकर मूर्ख से विद्वान्, कमजोर से शक्तिशाली, नास्तिक से आस्तिक, अभिमानी से स्वाभिमानी, भोगी से योगी, रोगी से निरोगी, मांसाहारी से शाकाहारी, कुपात्र से सुपात्र बनता जाएगा।SwamantavyamantavyprakashManusmriti is an ancient work on jurisprudence. Unfortunately, some misunderstandings and misconceptions are prevailing about Manu and his Manusmriti.Dr. Surendra Kumar ji an eminent Samskrita scholar has quoted many internal evidences from this book to prove that all these claims have no ground. They are false and malicious. He examined each and every Shlokas to detect the genuine from the interpolated ones. He has given convincing and logical proofs why such and such Shlokas are later additions to the body of the Manusmriti. An English translation of this book from the Ärsha Vedic point of view was not available. Arya UpadeshakaShri Pt. SatyapraksahBeegoo ji from Mauritius, voluntarily agreed to translate this into English, enhancing its value with transliteration of every Shloka, and providing the meaning of all the Samskrita words.स्वामी दयानन्द का जीवन दर्शन और 200 सुवचन
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Descriptionसंसार भर में सर्वाधिक बिकनेवाले सत्य-असत्य एवं पाप-पुण्य के निर्णायक महर्षि दयानन्द कृत ग्रन्थ ‘सत्यार्थ प्रकाश‘ क्यों पढ़ें? ‘सत्यार्थ प्रकाश महर्षि दयानन्द सरस्वती की अमर कृति है। इस ग्रन्थ के अध्ययन से लाखों लोगों के जीवन बदल गये, लाखों की कायापलट हो गई। इस ग्रन्थ का और अधिक प्रचार और प्रसार हो, इस लक्ष्य को दृष्टि में रखकर लेखक ने सभी समुल्लासों पर लगभग 700 प्रश्न लिखे हैं। इन प्रश्नों को पढ़कर इनके उत्तर की जिज्ञासा होगी। इन सभी प्रश्नों का उत्तर एक ही स्थान पर ‘सत्यार्थ प्रकाश में प्राप्त होगा, अतः जिज्ञासुओं को इस ग्रन्थ को पढ़ने की इच्छा जाग्रत होगी। ‘सत्यार्थ प्रकाश‘ के मन्तव्यों का जितना यथार्थ बोध होता जाएगा उतना ही मनुष्य सक्रिय होकर मूर्ख से विद्वान्, कमजोर से शक्तिशाली, नास्तिक से आस्तिक, अभिमानी से स्वाभिमानी, भोगी से योगी, रोगी से निरोगी, मांसाहारी से शाकाहारी, कुपात्र से सुपात्र बनता जाएगा।फल-फूल, कन्द-मूल, पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा अपने आपमें डिस्पेंसरी है-वैद्य भी, दवा भी, दवाखाना भी। तुलसी, पीपल, आक, बेल और नीबू या आँवला आयुर्विज्ञान ‘मृत्युंजय‘ माने हैं और हमारे लिए पूजा के प्रतीक रहे हैं, जबकि पूजन से अधिक इनके सेवन की जरूरत रही है।अकेले लहसुन में इतनी शक्ति है कि बुढ़ापे में झुर्रियाँ मिटा दे, नये दाँत उगा दे, पके बाल काले कर दे और सत्तर साल के बूढ़े को पच्चीस साल का जवान बना दे। यह कोई चमत्कार नहीं है, भगवान् धन्वन्तरि की विद्या है। संसार के वैज्ञानिकों ने हमारे आयुर्विज्ञान को बिगाड़कर इतना मँहगा बना दिया है कि इलाज भी रोग बन गया है। 12 ऐसी पुस्तकों का सैट जिन्हें खरीदकर आप सारी दुनिया को बाँटना चाहेंगे।1. लहसुन 2. नीम 3. तुलसी 4. आँवला 5. नीबू 6. अदरक 7. बरगद 8. दूध-घी 9. हींग 10. शहद 11. फिटकरी 12. हल्दीप्रस्तुत पुस्तक में महर्षि दयानंद ने इक्यावन ऐसे सिद्धांतो को हमारे सम्मुख रखा है जिनको वह स्वीकार करते हैं। वह कहते हैं कि उनका मंतव्य वही है जो तीन काल से सबको एक-सा मानने योग्य है, वह कोई नया मत-मतांतर नहीं चलाना चाहते। यदि वह पक्षपात करते तो किसी एक मत को आगे बढ़ाते। जो सत्य है उसको मानना, मनवाना और जो असत्य है उसको छोड़ना उनका अभिप्राय है।सर्वशक्तिमान परमात्मा की कृपा से सभी जन इन सिद्धांतों को स्वीकार करें, जिससे सब लोग सहज से धर्म-काम-मोक्ष को सिद्ध करके सदा उन्नत व आनंदित रहें।Manusmriti is an ancient work on jurisprudence. Unfortunately, some misunderstandings and misconceptions are prevailing about Manu and his Manusmriti.Dr. Surendra Kumar ji an eminent Samskrita scholar has quoted many internal evidences from this book to prove that all these claims have no ground. They are false and malicious. He examined each and every Shlokas to detect the genuine from the interpolated ones. He has given convincing and logical proofs why such and such Shlokas are later additions to the body of the Manusmriti. An English translation of this book from the Ärsha Vedic point of view was not available. Arya UpadeshakaShri Pt. SatyapraksahBeegoo ji from Mauritius, voluntarily agreed to translate this into English, enhancing its value with transliteration of every Shloka, and providing the meaning of all the Samskrita words.महर्षि दयानन्द 19वीं शताब्दी के वेदों के सबसे बड़े विद्वान् थे। वे मन्त्रद्रष्टा ऋषि थे। महर्षि ने दस वर्ष के अल्पकाल में जहाँ सहस्रों व्याख्यान दिये, सैकड़ों शास्त्रार्थ किये, वहाँ विपुल साहित्य का भी निर्माण किया। महर्षि दयानन्द का साहित्य भारत की अमूल्य निधि है। महर्षि के ग्रन्थों ने कोटि-कोटि मानवों के मन-मन्दिरों को ज्ञानालोक से आलोकित किया है। हमने महर्षि के विशाल, विपुल एवं गम्भीर साहित्य का मन्थन करके उसमें से कुछ रत्न निकालने का प्रयत्न किया है। लगभग तीन सौ रत्नों की एक माला गूँथकर हम पाठकों की सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं। यह माला कैसी है, इसका निर्णय तो पाठक ही कर सकेंगे।स्वामी जी ने वैदिक धर्म एवं भारतीय संस्कृति की मान्यताओंको सत्य और शास्त्र की कसौटी पर कस कर दुनिया के सामनेप्रस्तुत किया है।स्वामी दयानन्द ने सिर्फ धर्म और अध्यात्म तक ही सीमितरहकर प्रचार अभियान नहीं चलाया बल्कि समाज, राष्ट्र औरजीवन निर्माण का भी सन्देश जन-जन तक पहुँचाने का कार्यकिया है। अभिभावकों, विद्यार्थियों एवं कन्याओं को सुसंस्कारितऔर शिक्षित करने के लिए उन्होंने अपनी वाणी और लेखनी कासदुपयोग किया। इक्कीसवीं सदी में युवाओं को सन्मार्ग पर प्रेरितकरने के लिए 200 सुवचनों को इस पुस्तक में संकलित कियागया है, जिससे कि एक बलवान और गुणवान युवा राष्ट्र कानिर्माण हो सके।
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