वेद में भौतिकी विज्ञान Ved Men Bhautiki Vigyan
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“वेद” विश्व वाग्मय् में प्राचीनतम ज्ञान के रत्न है। वेदो में धर्म विज्ञान दर्शन, आचार शास्त्र, आयुर्वेद, दर्शन, संगीत आदि समस्त विषयों का वर्णन मिलता हैं। विज्ञान विषय के समस्त चिंतन की समस्त मूलभूत अवधारणाएं वेद से ही उद्भूत हुई है। वेद समस्त विधाओं की निधि एवं सभी विज्ञानों का मूल स्रोत हैं।
मनुस्मृति में कहा गया है – ‘सर्वज्ञानमयो हिसः’, वेदों में विज्ञान के अपूर्व भण्डार मिलते हैं। विज्ञान के सन्दर्भ में एक ब्राह्मण आचार्य पं० मधूसूदन ओझा ने कहा है कि ‘दृष्टि के सामने आने वाले विभिन्न पदार्थों में समान रूप से मूलत: वर्तमान रहने वाले किसी एक तत्व का अनुभव ज्ञान कहलाता है। मूल में एक स्थायी नित्य तत्व मानकर उसकी ही अनन्त पदार्थों के रूप में परिणति का वर्णन विज्ञान कहलाता है’।
वेद, ब्राम्हण ग्रंथों, श्रोतसूत्रों आदि में यज्ञों का महत्व एवं वैज्ञानिकता वर्णित है। वेदों में भौतिक विज्ञान के तथ्यों का विवरण मिलता है। ऋग्वेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद में उल्लेख मिलता है कि अथर्वा ऋषि विश्व के प्रथम वैज्ञानिक ग्रन्थ हैं। वैदिक मंत्रों में ऋषियों ने बताया है कि ऊर्जा अग्नि ही है। अग्नि पुंजीभूत है। अग्नि से जो ऊर्जा उत्पन्न होती है वह इस जगत के सभी कार्यों को गति देती है। ऋग्वेद में अग्नि को ऊर्जा का सम्राट कहा है….
‘त्वामग्ने मनीषिण सम्राजम्’ ।
यजुर्वेद में कहा है …
अयमिह प्रथमो धायि धातृभिहोर्ता यजिष्ठ: ।
अथर्वा ऋषि ने अग्नि के तीन आविष्कार बताये हैं…
1. घर्षण (Friction) द्धारा अग्नि की उत्पत्ति – यजुर्वेद में उल्लेख मिलता है कि अथर्वा ऋषि ने मन्थन घर्षण के द्वारा अग्नि की उत्पत्ति की है…
‘अथर्वा त्वा प्रथमो निरमन्थद् अग्ने’। (यजुर्वेद 11.33)
2. जलीय विद्युत – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और तैत्तिरीय संहिता में उल्लेख है कि अथर्वा ऋषि ने सरोवर के जल से मन्थन (friction) के द्वारा जलीय विद्युत (Hydel) का आविष्कार किया।
‘त्वामग्ने पुष्करादधि अथर्वा निरमन्थत’।
(ऋग्वेद 6.16.13, यजुर्वेद 11.32, सामवेद 9, तैत्तिरीय 3.5.11.3)
3. भूगर्भीय अग्नि – ऋग्वेद, यजुर्वेद और तैत्तिरीय संहिता में वर्णन मिलता है कि अथर्वा ऋषि ने सर्वप्रथम भूगर्भीय अग्नि का पता लगाया और उत्खनन से उसे धरती से बाहर निकाला। भूगर्भीय अग्नि में ज्वलनशील पदार्थ पेट्रोल, गैस, कैरोसीन आदि आते है। यजुर्वेद में भूगर्भीय अग्नि के लिए ‘पुरीष्य‘ शब्द का प्रयोग हुआ है।
पुरीष्या-सि विश्वभरा अथर्वा त्वा प्रथमो निरमन्थग्ने।
( यजुर्वेद 11.32)
पृथिव्या: सधस्थाद् अग्निं पुरीष्यम् ………. खनाम।
(यजुर्वेद 11.28)
आपां पृष्ठमसि योनिरग्ने समुद्रम् अभित: पिन्वमानम्। (यजुर्वेद 11.29)
भौतिक विज्ञान में वर्णित ऊर्जा के अनेक प्रकार जैसे मैकेनिक ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा, सौर ऊर्जा आदि का ज्ञान ऋषियों को पहले से ही था। ऋग्वेद में ऊर्जा के अनेक प्रकार ऋषियों ने बताए हुए है।
तैत्तिरीय संहिता में ऊर्जा के वातयंत्र, ऋतुयंत्र, दिशायंत्र और तेजस यंत्र बताए है। ध्वनि तरंगो के मापन का यंत्र वाग्ययंत्र का उल्लेख मिलता है।
ऋग्वेद और यजुर्वेद में ऋचाओं में वर्णन मिलता है इन्द्र वसु और गन्धर्व इन तीनों ने सूर्य से ऊर्जा का दोहन किया है, सौर ऊर्जा का आविष्कार किया है।
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