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Swami Dayanand ka JIvan Darshan aur 200 Suvachan स्वामी दयानन्द का जीवन दर्शन और 200 सुवचन by श्री चन्द्रशेखर लोखण्डे

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स्वामी जी ने वैदिक धर्म एवं भारतीय संस्कृति की मान्यताओंको सत्य और शास्त्र की कसौटी पर कस कर दुनिया के सामनेप्रस्तुत किया है।स्वामी दयानन्द ने सिर्फ धर्म और अध्यात्म तक ही सीमितरहकर प्रचार अभियान नहीं चलाया बल्कि समाज, राष्ट्र औरजीवन निर्माण का भी सन्देश जन-जन तक पहुँचाने का कार्यकिया है। अभिभावकों, विद्यार्थियों एवं कन्याओं को सुसंस्कारितऔर शिक्षित करने के लिए उन्होंने अपनी वाणी और लेखनी कासदुपयोग किया। इक्कीसवीं सदी में युवाओं को सन्मार्ग पर प्रेरितकरने के लिए 200 सुवचनों को इस पुस्तक में संकलित कियागया है, जिससे कि एक बलवान और गुणवान युवा राष्ट्र कानिर्माण हो सके।

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SettingsSwami Dayanand ka JIvan Darshan aur 200 Suvachan स्वामी दयानन्द का जीवन दर्शन और 200 सुवचन by श्री चन्द्रशेखर लोखण्डे removeसत्यार्थ प्रकाश क्यों पढ़ें? Satyartha Prakash Kyon Paden by श्री नीरज विद्यार्थी removeA set of 12 books of Ghar Ka Vaidya घर का वैद्य (बारह भागों में) by सुनील शर्मा removeAn Introduction of The Yajurveda by Dr. Bhawanilal Bhartiya removeDayanad Sukti aur shubhashit महर्षि दयानन्द removeस्वमन्तव्यामन्तव्यप्रकाश Swamantavyamantavyprakash remove
Imageस्वामी दयानन्द का जीवन दर्शन और 200 सुवचनसंसार भर में सर्वाधिक बिकनेवाले सत्य-असत्य एवं पाप-पुण्य के निर्णायक महर्षि दयानन्द कृत ग्रन्थ ‘सत्यार्थ प्रकाश‘ क्यों पढ़ें? ‘सत्यार्थ प्रकाश महर्षि दयानन्द सरस्वती की अमर कृति है। इस ग्रन्थ के अध्ययन से लाखों लोगों के जीवन बदल गये, लाखों की कायापलट हो गई। इस ग्रन्थ का और अधिक प्रचार और प्रसार हो, इस लक्ष्य को दृष्टि में रखकर लेखक ने सभी समुल्लासों पर लगभग 700 प्रश्न लिखे हैं। इन प्रश्नों को पढ़कर इनके उत्तर की जिज्ञासा होगी। इन सभी प्रश्नों का उत्तर एक ही स्थान पर ‘सत्यार्थ प्रकाश में प्राप्त होगा, अतः जिज्ञासुओं को इस ग्रन्थ को पढ़ने की इच्छा जाग्रत होगी। ‘सत्यार्थ प्रकाश‘ के मन्तव्यों का जितना यथार्थ बोध होता जाएगा उतना ही मनुष्य सक्रिय होकर मूर्ख से विद्वान्, कमजोर से शक्तिशाली, नास्तिक से आस्तिक, अभिमानी से स्वाभिमानी, भोगी से योगी, रोगी से निरोगी, मांसाहारी से शाकाहारी, कुपात्र से सुपात्र बनता जाएगा।The Vedas, since the dawn of human civilization have been regarded as the first source book of knowledge, given to man for his individual and collective welfare. They speak of eternal truth and not the history of earlier people as understood by many today. Yajurveda is a collection of 1975 verses spread over forty chapters. A wide range of subjects have been included in the present book which gives glimpses of the Revealed Knowledge. This small effort is meant for general public who may enjoy and be inspired by the Vedic lore. An inquisitive reader should go through the original complete Yajurveda translated by Maharshi Dayanand Saraswati, for full benefit and appreciationSwamantavyamantavyprakash
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Descriptionस्वामी जी ने वैदिक धर्म एवं भारतीय संस्कृति की मान्यताओंको सत्य और शास्त्र की कसौटी पर कस कर दुनिया के सामनेप्रस्तुत किया है।स्वामी दयानन्द ने सिर्फ धर्म और अध्यात्म तक ही सीमितरहकर प्रचार अभियान नहीं चलाया बल्कि समाज, राष्ट्र औरजीवन निर्माण का भी सन्देश जन-जन तक पहुँचाने का कार्यकिया है। अभिभावकों, विद्यार्थियों एवं कन्याओं को सुसंस्कारितऔर शिक्षित करने के लिए उन्होंने अपनी वाणी और लेखनी कासदुपयोग किया। इक्कीसवीं सदी में युवाओं को सन्मार्ग पर प्रेरितकरने के लिए 200 सुवचनों को इस पुस्तक में संकलित कियागया है, जिससे कि एक बलवान और गुणवान युवा राष्ट्र कानिर्माण हो सके।संसार भर में सर्वाधिक बिकनेवाले सत्य-असत्य एवं पाप-पुण्य के निर्णायक महर्षि दयानन्द कृत ग्रन्थ ‘सत्यार्थ प्रकाश‘ क्यों पढ़ें? ‘सत्यार्थ प्रकाश महर्षि दयानन्द सरस्वती की अमर कृति है। इस ग्रन्थ के अध्ययन से लाखों लोगों के जीवन बदल गये, लाखों की कायापलट हो गई। इस ग्रन्थ का और अधिक प्रचार और प्रसार हो, इस लक्ष्य को दृष्टि में रखकर लेखक ने सभी समुल्लासों पर लगभग 700 प्रश्न लिखे हैं। इन प्रश्नों को पढ़कर इनके उत्तर की जिज्ञासा होगी। इन सभी प्रश्नों का उत्तर एक ही स्थान पर ‘सत्यार्थ प्रकाश में प्राप्त होगा, अतः जिज्ञासुओं को इस ग्रन्थ को पढ़ने की इच्छा जाग्रत होगी। ‘सत्यार्थ प्रकाश‘ के मन्तव्यों का जितना यथार्थ बोध होता जाएगा उतना ही मनुष्य सक्रिय होकर मूर्ख से विद्वान्, कमजोर से शक्तिशाली, नास्तिक से आस्तिक, अभिमानी से स्वाभिमानी, भोगी से योगी, रोगी से निरोगी, मांसाहारी से शाकाहारी, कुपात्र से सुपात्र बनता जाएगा।फल-फूल, कन्द-मूल, पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा अपने आपमें डिस्पेंसरी है-वैद्य भी, दवा भी, दवाखाना भी। तुलसी, पीपल, आक, बेल और नीबू या आँवला आयुर्विज्ञान ‘मृत्युंजय‘ माने हैं और हमारे लिए पूजा के प्रतीक रहे हैं, जबकि पूजन से अधिक इनके सेवन की जरूरत रही है।अकेले लहसुन में इतनी शक्ति है कि बुढ़ापे में झुर्रियाँ मिटा दे, नये दाँत उगा दे, पके बाल काले कर दे और सत्तर साल के बूढ़े को पच्चीस साल का जवान बना दे। यह कोई चमत्कार नहीं है, भगवान् धन्वन्तरि की विद्या है। संसार के वैज्ञानिकों ने हमारे आयुर्विज्ञान को बिगाड़कर इतना मँहगा बना दिया है कि इलाज भी रोग बन गया है। 12 ऐसी पुस्तकों का सैट जिन्हें खरीदकर आप सारी दुनिया को बाँटना चाहेंगे।1. लहसुन 2. नीम 3. तुलसी 4. आँवला 5. नीबू 6. अदरक 7. बरगद 8. दूध-घी 9. हींग 10. शहद 11. फिटकरी 12. हल्दीThe Vedas, since the dawn of human civilization have been regarded as the first source book of knowledge, given to man for his individual and collective welfare. They speak of eternal truth and not the history of earlier people as understood by many today. Yajurveda is a collection of 1975 verses spread over forty chapters. A wide range of subjects have been included in the present book which gives glimpses of the Revealed Knowledge. This small effort is meant for general public who may enjoy and be inspired by the Vedic lore. An inquisitive reader should go through the original complete Yajurveda translated by Maharshi Dayanand Saraswati, for full benefit and appreciationमहर्षि दयानन्द 19वीं शताब्दी के वेदों के सबसे बड़े विद्वान् थे। वे मन्त्रद्रष्टा ऋषि थे। महर्षि ने दस वर्ष के अल्पकाल में जहाँ सहस्रों व्याख्यान दिये, सैकड़ों शास्त्रार्थ किये, वहाँ विपुल साहित्य का भी निर्माण किया। महर्षि दयानन्द का साहित्य भारत की अमूल्य निधि है। महर्षि के ग्रन्थों ने कोटि-कोटि मानवों के मन-मन्दिरों को ज्ञानालोक से आलोकित किया है। हमने महर्षि के विशाल, विपुल एवं गम्भीर साहित्य का मन्थन करके उसमें से कुछ रत्न निकालने का प्रयत्न किया है। लगभग तीन सौ रत्नों की एक माला गूँथकर हम पाठकों की सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं। यह माला कैसी है, इसका निर्णय तो पाठक ही कर सकेंगे।प्रस्तुत पुस्तक में महर्षि दयानंद ने इक्यावन ऐसे सिद्धांतो को हमारे सम्मुख रखा है जिनको वह स्वीकार करते हैं। वह कहते हैं कि उनका मंतव्य वही है जो तीन काल से सबको एक-सा मानने योग्य है, वह कोई नया मत-मतांतर नहीं चलाना चाहते। यदि वह पक्षपात करते तो किसी एक मत को आगे बढ़ाते। जो सत्य है उसको मानना, मनवाना और जो असत्य है उसको छोड़ना उनका अभिप्राय है।सर्वशक्तिमान परमात्मा की कृपा से सभी जन इन सिद्धांतों को स्वीकार करें, जिससे सब लोग सहज से धर्म-काम-मोक्ष को सिद्ध करके सदा उन्नत व आनंदित रहें।
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