Bhartiya Itihaas Ki Bhayankar Bhulen(भारतीय इतिहास की भयंकर भूले)

Description
भारत पर विगत एक हजार वर्ष से अधिक समय तक विदेशियों के निरन्तर शासन ने भारतीय इतिहास ग्रन्थों में अति पवित्र विचारों के रूप में अनेकानेक भयंकर धारणाओं को समाविष्ट कर दिया है। अनेक शताब्दियों तक सरकारी मान्यता तथा संरक्षण में पुष्ट होते रहने के कारण, समय व्यतीत होने के साथ – साथ, इन भ्रम – जनित धारणाओं को आधिकारिकता की मोहर लग चुकी है।यदि इतिहास से हमारा अर्थ किसी देश के तथ्यात्मक एवं तिथिक्रमागत सही – सही भूतकालिक वर्णन से हो, तो हमें वर्तमान समय में प्रचलित भारतीय इतिहास को काल्पनिक अरेबियन कहानियों की श्रेणी में रखना होगा।
ऐसे इतिहास का तिरस्कार और पुनर्लेखन होना चाहिए। इस पुस्तक में लेखक ने भारतीय इतिहास – परिशोध की कुछ भयंकर भूलों की ओर इंगित किया है। जो भूलें यहाँ सूची में आ गयी हैं, केवल वे ही अन्तिम रूप में भूलें नहीं हैं। भारतीय और विश्व इतिहास पर पुनः दृष्टि डालने एवं प्राचीन मान्यताओं का प्रभाव अपने ऊपर न होने देने वाले विद्वानों के लिए अन्वेषण का कितना विशाल क्षेत्र उनकी बाट जोह रहा है, केवल यह दिखाने के लिए ये तो कुछ उदाहरण मात्र हैं। हमें बताया जाता है कि पुरानी दिल्ली की स्थापना 15 वीं शताब्दी में बादशाह शहाजहाँ द्वारा हुई थी। यदि यह बात सत्य होगी, तो गुणवाचक पुरानी संज्ञा न्याय कैसे है? इस प्रकार तो यह भारत में दिल्ली में ब्रिटिश – शासन से पूर्व नवीनतम दिल्ली ही सिद्ध होती है। इसीलिए, यह तो कालगणना की दृष्टि से लन्दन और न्यूयार्क की श्रेणी में आती है। दिल्ली में एक पुराना किला अर्थात् प्राचीन दुर्ग नामक स्मारक है। यह मुस्लिम – पूर्व काल का तथा उससे भी पूर्व महाभारत – कालीन विश्वास किया जाता है। अतः यदि पुराना किला प्राचीनतम दुर्ग का द्योतक है, तो पुरानी दिल्ली लगभग आधुनिक नगरी किसा प्रकार हुई। प्रचलित ऐतिहासिक पुस्तकों में समाविष्ट और उनको भ्रष्ट करने वाली ऐसी ही असंख्य युक्तिहीन बातें हैं जिन पर पुनर्विचार करने की अत्यन्त आवश्यकता है। तथ्यों को तोड़ – मरोड़कर और असंगतियों के अतिरिक्त भारतीय इतिहास को बुरी तरह से विकलांग कर दिया है। इसके महत्त्वपूर्ण अध्यायों में से अनेक अध्याय पूर्ण रूप से लुप्त हो गये हैं। प्रस्तुत पुस्तक में भारत के सत्य इतिहास को प्रदर्शित करने का प्रयास किया गया है। इसमें भारतवर्ष के विशाल साम्राज्य – प्रभुत्व के चिह्न इस पुस्तक के कुछ अध्यायों में प्रकट किये गये हैं। आशा है कि प्रस्तुत पुस्तक भारतीय इतिहास परिशोध में प्रविष्ट कुछ भयंकर त्रुटियों को सम्मुख लाने में सहायक होगी तथा अन्वेषण का मार्ग प्रशस्त करेगी।
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Ashok kaushik
| About the AuthorSwami jagdeshwar sarawatiProduct details
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