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A set of 12 books of Ghar Ka Vaidya घर का वैद्य (बारह भागों में) by सुनील शर्मा

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फल-फूल, कन्द-मूल, पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा अपने आपमें डिस्पेंसरी है-वैद्य भी, दवा भी, दवाखाना भी। तुलसी, पीपल, आक, बेल और नीबू या आँवला आयुर्विज्ञान ‘मृत्युंजय‘ माने हैं और हमारे लिए पूजा के प्रतीक रहे हैं, जबकि पूजन से अधिक इनके सेवन की जरूरत रही है।अकेले लहसुन में इतनी शक्ति है कि बुढ़ापे में झुर्रियाँ मिटा दे, नये दाँत उगा दे, पके बाल काले कर दे और सत्तर साल के बूढ़े को पच्चीस साल का जवान बना दे। यह कोई चमत्कार नहीं है, भगवान् धन्वन्तरि की विद्या है। संसार के वैज्ञानिकों ने हमारे आयुर्विज्ञान को बिगाड़कर इतना मँहगा बना दिया है कि इलाज भी रोग बन गया है। 12 ऐसी पुस्तकों का सैट जिन्हें खरीदकर आप सारी दुनिया को बाँटना चाहेंगे।1. लहसुन 2. नीम 3. तुलसी 4. आँवला 5. नीबू 6. अदरक 7. बरगद 8. दूध-घी 9. हींग 10. शहद 11. फिटकरी 12. हल्दी

When nature has provided us so many Plants, Vegetable and Fruits with medicinal values than why to consume medicines for every small ailment. In following 12 books the author has directed us to how to use readily available food to cure common diseases. These books are ONION, AMLA, GINGER, TERMERIC, HONNEY, MILK-MILK PRODUCTS, NEEM, LEMON, TULSI, BARGAD, FITKARI and HING.

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SettingsA set of 12 books of Ghar Ka Vaidya घर का वैद्य (बारह भागों में) by सुनील शर्मा removeस्वमन्तव्यामन्तव्यप्रकाश Swamantavyamantavyprakash removeSwami Dayanand ka JIvan Darshan aur 200 Suvachan स्वामी दयानन्द का जीवन दर्शन और 200 सुवचन by श्री चन्द्रशेखर लोखण्डे removeDayanad Sukti aur shubhashit महर्षि दयानन्द removeसांख्य दर्शन का सरल भाष्य by डॉ. हरिशचन्द्र removeThe Manusmriti by Pandit Satyaprakash Beegoo remove
ImageSwamantavyamantavyprakashस्वामी दयानन्द का जीवन दर्शन और 200 सुवचनसांख्य की उपादेयतासांख्यदर्शन में सृष्टि के तीन स्तरों पर विचार किया गया है। सृष्टि के तीन स्तरों का प्रमाण हमें अपनी तीन अवस्थाओं से प्राप्त हो जाता है १ जाग्रतावस्था में इन्द्रियों के माध्यम से हम बाह्य स्थूल जगत् से जुड़ते हैं।२ स्वप्नावस्था में बुद्धि आदि के सूक्ष्म शरीर-जगत् में गतिविधि होती है।३ सुषुप्ति में हम कारण जगत् में होते हैं, जहाँ प्रकृति के तीनों गुणों की साम्यावस्था होने से दुःख लेशमात्र नहीं होता है।उपासना से तात्पर्य है कि तीसरी; सुषुप्ति अवस्था के समान चौथी; तुरीयावस्था को इच्छानुसार पाना । तदर्थ तन व मन की समस्त हलचल को रोकना होता है। उपासना के ही व्यापक क्षेत्र में आत्मा व मन की ग्रन्थि से सम्बन्धित अनेक विषय आ जाते हैं। यथा, इस ग्रन्थि से आत्मा को बन्धन कैसे प्राप्त होता है, बन्धन के परिणामस्वरूप होने वाले दुःख की विवेचना, बन्धन से मुक्ति के उपाय, इत्यादि ।सांख्य दर्शन, उपासना की विवेचना का प्रथम ग्रन्थ है। इन कारणों; सृष्टि के तीन स्तर और उपासना, से सांख्य का अत्यधिक महत्त्व है। छह वैदिक दर्शनों में यह पहला ग्रन्थ है जो सूत्र शैली में है। योग.दर्शन की नींव सांख्य पर ही है। सांख्य को समझे बिना योग नही समझा जा सकता है और न ही अन्य दर्शन, उपनिषद् और वेद ।दुर्भाग्य से सांख्य का कोई आर्ष भाष्य उपलब्ध नहीं है। प्रस्तुत भाष्य इस कमी को पूरा करने का एक प्रयास है। सांख्य में ईश्वर, वेद, उपासना विधि का समुचित वर्णन है किन्तु आधुनिक युग के कुछ व्याख्याकारों ने सांख्य को नास्तिक दर्शन कहा है। ऐसी अनेक मान्यताओं का निराकरण प्रस्तुत भाष्य में सप्रमाण किया गया है।Manusmriti is an ancient work on jurisprudence. Unfortunately, some misunderstandings and misconceptions are prevailing about Manu and his Manusmriti.Dr. Surendra Kumar ji an eminent Samskrita scholar has quoted many internal evidences from this book to prove that all these claims have no ground. They are false and malicious. He examined each and every Shlokas to detect the genuine from the interpolated ones. He has given convincing and logical proofs why such and such Shlokas are later additions to the body of the Manusmriti. An English translation of this book from the Ärsha Vedic point of view was not available. Arya UpadeshakaShri Pt. SatyapraksahBeegoo ji from Mauritius, voluntarily agreed to translate this into English, enhancing its value with transliteration of every Shloka, and providing the meaning of all the Samskrita words.
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Descriptionफल-फूल, कन्द-मूल, पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा अपने आपमें डिस्पेंसरी है-वैद्य भी, दवा भी, दवाखाना भी। तुलसी, पीपल, आक, बेल और नीबू या आँवला आयुर्विज्ञान ‘मृत्युंजय‘ माने हैं और हमारे लिए पूजा के प्रतीक रहे हैं, जबकि पूजन से अधिक इनके सेवन की जरूरत रही है।अकेले लहसुन में इतनी शक्ति है कि बुढ़ापे में झुर्रियाँ मिटा दे, नये दाँत उगा दे, पके बाल काले कर दे और सत्तर साल के बूढ़े को पच्चीस साल का जवान बना दे। यह कोई चमत्कार नहीं है, भगवान् धन्वन्तरि की विद्या है। संसार के वैज्ञानिकों ने हमारे आयुर्विज्ञान को बिगाड़कर इतना मँहगा बना दिया है कि इलाज भी रोग बन गया है। 12 ऐसी पुस्तकों का सैट जिन्हें खरीदकर आप सारी दुनिया को बाँटना चाहेंगे।1. लहसुन 2. नीम 3. तुलसी 4. आँवला 5. नीबू 6. अदरक 7. बरगद 8. दूध-घी 9. हींग 10. शहद 11. फिटकरी 12. हल्दीप्रस्तुत पुस्तक में महर्षि दयानंद ने इक्यावन ऐसे सिद्धांतो को हमारे सम्मुख रखा है जिनको वह स्वीकार करते हैं। वह कहते हैं कि उनका मंतव्य वही है जो तीन काल से सबको एक-सा मानने योग्य है, वह कोई नया मत-मतांतर नहीं चलाना चाहते। यदि वह पक्षपात करते तो किसी एक मत को आगे बढ़ाते। जो सत्य है उसको मानना, मनवाना और जो असत्य है उसको छोड़ना उनका अभिप्राय है।सर्वशक्तिमान परमात्मा की कृपा से सभी जन इन सिद्धांतों को स्वीकार करें, जिससे सब लोग सहज से धर्म-काम-मोक्ष को सिद्ध करके सदा उन्नत व आनंदित रहें।स्वामी जी ने वैदिक धर्म एवं भारतीय संस्कृति की मान्यताओंको सत्य और शास्त्र की कसौटी पर कस कर दुनिया के सामनेप्रस्तुत किया है।स्वामी दयानन्द ने सिर्फ धर्म और अध्यात्म तक ही सीमितरहकर प्रचार अभियान नहीं चलाया बल्कि समाज, राष्ट्र औरजीवन निर्माण का भी सन्देश जन-जन तक पहुँचाने का कार्यकिया है। अभिभावकों, विद्यार्थियों एवं कन्याओं को सुसंस्कारितऔर शिक्षित करने के लिए उन्होंने अपनी वाणी और लेखनी कासदुपयोग किया। इक्कीसवीं सदी में युवाओं को सन्मार्ग पर प्रेरितकरने के लिए 200 सुवचनों को इस पुस्तक में संकलित कियागया है, जिससे कि एक बलवान और गुणवान युवा राष्ट्र कानिर्माण हो सके।महर्षि दयानन्द 19वीं शताब्दी के वेदों के सबसे बड़े विद्वान् थे। वे मन्त्रद्रष्टा ऋषि थे। महर्षि ने दस वर्ष के अल्पकाल में जहाँ सहस्रों व्याख्यान दिये, सैकड़ों शास्त्रार्थ किये, वहाँ विपुल साहित्य का भी निर्माण किया। महर्षि दयानन्द का साहित्य भारत की अमूल्य निधि है। महर्षि के ग्रन्थों ने कोटि-कोटि मानवों के मन-मन्दिरों को ज्ञानालोक से आलोकित किया है। हमने महर्षि के विशाल, विपुल एवं गम्भीर साहित्य का मन्थन करके उसमें से कुछ रत्न निकालने का प्रयत्न किया है। लगभग तीन सौ रत्नों की एक माला गूँथकर हम पाठकों की सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं। यह माला कैसी है, इसका निर्णय तो पाठक ही कर सकेंगे।सांख्य की उपादेयतासांख्यदर्शन में सृष्टि के तीन स्तरों पर विचार किया गया है। सृष्टि के तीन स्तरों का प्रमाण हमें अपनी तीन अवस्थाओं से प्राप्त हो जाता है १ जाग्रतावस्था में इन्द्रियों के माध्यम से हम बाह्य स्थूल जगत् से जुड़ते हैं।२ स्वप्नावस्था में बुद्धि आदि के सूक्ष्म शरीर-जगत् में गतिविधि होती है।३ सुषुप्ति में हम कारण जगत् में होते हैं, जहाँ प्रकृति के तीनों गुणों की साम्यावस्था होने से दुःख लेशमात्र नहीं होता है।उपासना से तात्पर्य है कि तीसरी; सुषुप्ति अवस्था के समान चौथी; तुरीयावस्था को इच्छानुसार पाना । तदर्थ तन व मन की समस्त हलचल को रोकना होता है। उपासना के ही व्यापक क्षेत्र में आत्मा व मन की ग्रन्थि से सम्बन्धित अनेक विषय आ जाते हैं। यथा, इस ग्रन्थि से आत्मा को बन्धन कैसे प्राप्त होता है, बन्धन के परिणामस्वरूप होने वाले दुःख की विवेचना, बन्धन से मुक्ति के उपाय, इत्यादि ।सांख्य दर्शन, उपासना की विवेचना का प्रथम ग्रन्थ है। इन कारणों; सृष्टि के तीन स्तर और उपासना, से सांख्य का अत्यधिक महत्त्व है। छह वैदिक दर्शनों में यह पहला ग्रन्थ है जो सूत्र शैली में है। योग.दर्शन की नींव सांख्य पर ही है। सांख्य को समझे बिना योग नही समझा जा सकता है और न ही अन्य दर्शन, उपनिषद् और वेद ।दुर्भाग्य से सांख्य का कोई आर्ष भाष्य उपलब्ध नहीं है। प्रस्तुत भाष्य इस कमी को पूरा करने का एक प्रयास है। सांख्य में ईश्वर, वेद, उपासना विधि का समुचित वर्णन है किन्तु आधुनिक युग के कुछ व्याख्याकारों ने सांख्य को नास्तिक दर्शन कहा है। ऐसी अनेक मान्यताओं का निराकरण प्रस्तुत भाष्य में सप्रमाण किया गया है।Manusmriti is an ancient work on jurisprudence. Unfortunately, some misunderstandings and misconceptions are prevailing about Manu and his Manusmriti.Dr. Surendra Kumar ji an eminent Samskrita scholar has quoted many internal evidences from this book to prove that all these claims have no ground. They are false and malicious. He examined each and every Shlokas to detect the genuine from the interpolated ones. He has given convincing and logical proofs why such and such Shlokas are later additions to the body of the Manusmriti. An English translation of this book from the Ärsha Vedic point of view was not available. Arya UpadeshakaShri Pt. SatyapraksahBeegoo ji from Mauritius, voluntarily agreed to translate this into English, enhancing its value with transliteration of every Shloka, and providing the meaning of all the Samskrita words.
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