सांख्यदर्शन का इतिहास Sankhya Darshan Ka Itihas

Description
पुस्तक का नाम – सांख्य दर्शन का इतिहास
लेखक – आचार्य उदयवीर शास्त्री
भारतीय दर्शनों में सांख्य दर्शन का महत्व अद्वितीय है। अपनी अत्यंत प्राचीनता के कारण ही, न केवल भारतीय वाङ्मय, विचारधारा पर अपने अमिट छाप छोड़ने के कारण ही, किन्तु वास्तविक अर्थों में किसी भी दार्शनिक प्रस्थान के लिए आवश्यक गहरी आध्यात्मिक दृष्टि के कारण भी इसका महत्व अति स्पष्ट है।
सांख्य प्रवर्तक कपिल के लिए “ऋषि प्रसूत कपिलं यस्तमग्रे ज्ञानेर्विभर्ति” (श्वेता.उप. ५/२) जैसा वर्णन स्पष्ट है उससे इस दर्शन की प्राचीनता को सिद्ध होती है।
किन्तु पाश्चात्य विद्वान, वामपंथी इतिहासकार, अन्य इतिहासकार इस दर्शन और कपिल को अर्वाचीन बौद्ध काल के बाद का सिद्ध करने का प्रयास करते हैं। इन सबके दिए तर्कों, तथ्यों का लेखक ने सप्रमाण, युक्ति-युक्त खंडन किया है। लेखक ने यह प्रबल स्थापना की है कि जिन शब्दों और सिद्धांतों से इसके बुद्ध आदि काल के बाद की कल्पना की जाती है वे या तो आधुनिक व्याख्याकारों के संशय के कारण से उत्पन्न भ्रान्तियाँ हैं या फिर कुछ सूत्र प्रक्षिप्त हैं। प्रक्षिप्त सूत्रों का सकारण विवेचन भी लेखक ने किया है। यह पुस्तक आठ अध्यायों में विभक्त है इसकी विषयवस्तु निम्न हैं –
१. महर्षि कपिल
२. कपिल प्रणीत षष्टितन्त्र
३. षष्टितन्त्र तथा सांख्यषडाध्यायी
४. वर्तमान सांख्य सूत्रों के उद्धरण
५. सांख्य षडाध्यायी की रचना
६. सांख्य-सूत्रों के व्याख्याकार
७. सांख्य-सप्तति के व्याख्याकार
८. अन्य प्राचीन सांख्याचार्य
प्रस्तुत पुस्तक में सांख्य साहित्य के क्रमिक इतिहास की दृष्टि से लेखक ने अपने विचारों का विद्वतापूर्ण शैली में निरूपण किया है। इस ग्रन्थ की उपयोगिता एवम् उपादेयता असंदिग्ध है। यह ग्रन्थ अनेक भ्रांतियों का निवारण करने वाला और दार्शनिक शोध कार्य करने वालों के लिए अति लाभप्रद है।
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| About the AuthorSwami jagdeshwar sarawatiProduct details
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Ashok kaushik
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