प्राचीन भारत में रसायन का विकास Prachin Bharat me Rasayan ka Vikas

Description
पुस्तक का नाम – प्राचीन भारत में रसायन का विकास
लेखक – स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती
वेद के आविर्भाव के अनन्तर ही प्राचीन आर्यों ने अनेक दृष्टिकोण से सृष्टि को समझने का प्रयास किया , और उन्होंने इस प्रसंग में वेदांगो की रचना की|
इन छह वेदांगो में एक कल्प है | इसी के अंतर्गत ही रसायन शास्त्र माना जा सकता है | भारतीय रसायन शास्त्र की परम्परा वैदिक संहिताओ की श्रुतियो से अनुप्रभावित है | प्रस्तुत ग्रन्थ – “ प्राचीन भारत में रसायन का विकास “ इस विषय का सांगोपांग अत्यंत प्रमाणिक ग्रन्थ है |
वैदिक ऋचाओं से लेकर के चरक और सुश्रुत कालीन विशुद्ध आयुर्वेदिक परम्पराओं तक कीरसायन सामग्री का इसमें संकलन है ,और बाद के तन्त्र साहित्य का भी | इसी के साथ साथ इसमें भारत की विविध सभ्यताओं जैसे सिन्धु घाटी ,तक्षशीला आदि और विभिन्न मन्दिरों मेंप्रयुक्त रसायनों और रसायन विद्या का उलेख है | रसायन विज्ञान के उपकरणों का भी सचित्र वर्णन किया गया है | रसायन शास्त्र के क्षेत्र में नागार्जुन का नाम प्रसिद्ध है उनसे प्रेरित हो कर अनेक तन्त्राचार्यो ने पारद ,अभ्रक ,रसो और उपरसो पर कार्य किया |
रसायन शास्त्र का एक सैद्धांतिक और दार्शनिक पक्ष भी रहा है –जिस उपादान सृष्टि का रचना हुई है ,उसको समझना और भौतिक एवं रसायनिक परिवर्तन का नियमित रूप से अध्यययन करना | कारण कार्य सम्बन्ध ,परमाणुवाद , सत्कार्यवाद ,असत् कार्य वाद आदि का इस ग्रन्थ में यथार्थ विवेचन है | रसायन शास्त्र के विकास की प्रचूर सामग्री लघु गृह उद्योगों से प्राप्त होती है | हमारे प्राचीन भग्नावशेष और संग्राहलयो में संकलित सामग्री इस परम्परा को पुष्ट करती है | अनेक दशको के बाद आचार्य प्रफुल्ल चंद राय ने इस विषय पर एक ग्रन्थ “ हिन्दू केमिस्ट्री “ आंग्ला भाषा में लिखा किन्तु आज सबसे प्रमाणिक ओर वृहद ग्रन्थ “ प्राचीन भारत में रसायनों का विकास “ ही है |
इस ग्रन्थ को प्राचीन भारत के वैज्ञानिक गौरव को जानने हेतु और उसका दिग्दर्शन करने के लिए अवश्य मंगाए और अध्ययन करे |
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Swami Dayanand Sarawati
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