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Vidhyarthi Lekhavali by परमहंस स्वामी जगदेशवानन्द सरस्वती

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Description

सुखार्थीः चेत् त्यजेत् विद्याम् विद्यार्थीः चेत् त्यजेत् सुखम् ॥

अर्थात् यदि सुख की कामना है तो विद्या की आशा छोड़ दें और यदि विद्या की कामना है तो सुख का लोभ त्याग दें । यहाँ सुख से मतलब है आलस्य से मिलने वाला झूठा सुख । काम से भागकर, स्वयं को धोखा देने में भी एक प्रकार का आकर्षण है लेकिन यदि विद्यार्थी पूर्ण रूचि लेकर अध्ययन करे, गुरुजनों की दी हुई शिक्षा को धारण करे तो, विद्या के ग्रहण में जो सुख मिलता है, उसकी अन्यत्र कहीं कल्पना भी नहीं की जा सकती । हमारे प्राचीन ग्रन्थों में विद्यार्थी के लिए कुछ मार्गदर्शन मिलता है, जो बड़ा ही उत्तम है । ये श्लोक हजारों वर्ष पुराना है, फिर भी आज के संदर्भ में उतना ही सटीक, उतना ही गंभीर ।
काकचेष्ठा बकोध्यानम् श्वाननिद्रा तथैव च ।

अल्पाहारी गृहत्यागी विद्यार्थीनाम पंचलक्षणम् ॥

विद्यार्थी के पाँच लक्षण हैं: उसकी गतिविधि कौवे के समान हो, उसका ध्यान बगुले के समान हो, उसकी नींद कुत्ते के समान हो, उसका आहार कम मात्रा वाला हो और उसका मन घर में बहुत फँसा हुआ न हो ।

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