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Vedo me rajneeti shastra by Dr. Satyaketu vidyalankar(वेदो में राजनीति)

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Description

प्राचीन काल से ही मनुष्य के सामाजिक विकास में राजनीति का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है राजनीति का ज्ञान हमें वैदिक वांगमय से ही प्राप्त हो जाता है। वेद आदि के अध्ययन से तत्कालीन राजनैतिक विकास का पता चलता है। वेद हमारी सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक तथा दार्शनिक विचारधाराओं के साथ राजनैतिक विचारधाराओं के भी आदिम स्त्रोत माने जाते हैं। राजनीतिज्ञों तथा शासकों के लिए वेद प्रेरणादायक हैं, क्योंकि इनमें राजनीति के सभी तत्वों की जानकारी मिलती है वेदों में राजा, सभा, समिति, राजा का चुनाव, राजाओं का पदच्युत किया जाना आदि के वर्णन से उस समय की राजनैतिक जागृति के स्पष्ट दर्शन होते हैं। उस समय राजा का प्रजा पर पूर्ण नियन्त्रण होता था। प्रजा भी राजनीतिक रूप से सजग होती थी। उस समय समाज या समिति ही राजा का चुनाव करती थी। वैदिक काल का यह राजनैतिक विकास निरन्तर बढ़ता चला गया। वह जनपद कहलाता है। अधिकांश राज्यों की उत्पत्ति एक विशेष जन या कबीले से सम्बद्ध थी। ऋग्वेद में पाँच कबीले विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं -1. अनु. 2. द्रहु, 3. यदु, 4. तुर्वश तथा 5. पुरु।’ ब्राह्मण तथा उपनिषद काल में राज्यों के विस्तार में वृद्धि होने लगी। अनेक जन या कबोले एक राज्य में सम्मिलित होने लगे। छठी शताब्दी ईसा पूर्व तक छोटे-छोटे भ्रमणशील जातीय समुदायों के स्थान पर बड़े और निश्चित भू-भाग युक्त राज्यों उल्लेख उपलब्ध है। ऋग्वेद के अनुसार राजा को चाहिए कि वह अपनी प्रजा के खान-पान निवास स्थान शिक्षा-दोक्षा, रक्षा-सुरक्षा की समुचित व्यवस्था करें राज्य संचालन हेतु मंत्री एवं पुरोहितों से परामर्श करें, युद्धोपयोगी उपकरणों एवं अस्त्र संचालन की सुव्यवस्था करे, रान्यविस्तार के लिए प्रयत्नशील हो, समाजवाद को प्रश्रय द तथा सेनापति एवं वोर सैनिकों को सब प्रकार से प्रसन्न रखे। क्षिप्रकारिता, उत्साह, शासन करने की योग्यत थिदता संस्कृति प्रियत दानशीलता दूरदर्शिता संकट का सामना करने की तत्परता, स्थिरमति, इदविचारशक्ति, उत्तमकार्य प्रणाली, कष्ट सहिष्णुता, नेतृत्व को योग्यता, सन्जनों की रक्षा करने की सामध्य, स्वावलम्बन, विश्वमंगल कामना आदि राजा के प्रमुख गुण माने गए हैं।”

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