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Vaisheshika Darshan(वैशेषिक दर्शनम्) by आचार्य उदयवीर शास्त्री

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Description

वैशेषिक दर्शनम् के प्रतिपादक महाऋषि कणाद है । प्राचीन भारत का वैदिक साहित्य इतना व्यापक है कि किसी भी वेदपाठी या वेदज्ञानी के लिए उन्हें पूरी तरह समझना और स्मरण रखना कठिन कार्य है। वेदों में ईश्वर या परम ब्रह्म के बारे में और सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में काफी कुछ कहा गया है। इनमें दर्शन एवं विश्व-विज्ञान निहित है। प्रारंभ में ये मौखिक विधा थी और श्रवण-स्मरण के माध्यम से पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होती थी दर्शनशास्त्र क्या है ? शब्दकल्पद्रुप के अनुसार, ”दृश्यते यथार्थतत्वम अनेन इति। यथार्थ तत्व अर्थात ईश्वर या परम ब्रह्म के ज्ञान को प्राप्त करने के लिए जिन ग्रंथों में पथ सुझाया गया है, वह दर्शन है। न्यायकोश के अनुसार, ”तत्वज्ञानसाधनं शास्त्रम। तत्व ज्ञान को प्राप्त करने का साधन ही दर्शन है। वेदवाक्य है, ”तत्वमसि अर्थात तत त्वम असि या वही तू है। जो आपके लिए दूसरा है, वस्तुत: वही आप हैं।

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