संस्कार समुच्चय Sanskar Samuchchay
Description
पुस्तक का नाम – संस्कार समुच्चय
लेखक – पंडित मदनमोहन विद्यासागर
लोहा, चाँदी आदि धातुएँ तपाने से शुद्ध होती हैं, संस्कारित करने से सुंदर दिखती हैं, भाषा को संस्कारित कर बोलने से उसके अधिक गुण प्रदर्शित होते हैं उसी प्रकार से मनुष्य भी संस्कारों से उत्कृष्ट बनता है। मनुष्य संस्कारों से उत्कृष्ट बने इसके लिए हमारे ऋषियों ने १६ संस्कारों का विधान किया। धीरे-धीरे अनेक बाहरी आक्रमणों और दूसरी संस्कृतियों के प्रभाव में यह संस्कार छूटते चले गये। महर्षि दयानन्द ने संस्कार विधि नामक संस्कारों की एक पुस्तक लिखी जिसमें प्राचीन आर्ष ग्रन्थ गृह्यसूत्र आदि के वचन उद्धृत कर १६ संस्कारों की विधि और परिचय दिया। इस संस्कार विधि पुस्तक पर अनेक व्याख्यान ग्रन्थ और टीका रूप पुस्तकें आर्य विद्वानों द्वारा लिखी गयी, उन पुस्तकों में से “संस्कार समुच्चय” नामक पुस्तक मुख्य है।
यह पुस्तक दो भागों में है, प्रथम भाग में संस्कार विधि पर आधृत गर्भाधान से लेकर अंतेष्टि पर्यन्त १६ संस्कार हैं।
द्वितीय भाग में वाग्दान, शिलान्यास, प्रायश्चित विधि, जन्म दिवस विधि, आयुष्काम विधि, दत्तक स्वीकरण विधि, वाणिज्य कला विधि, गोदान विधि, केशांत विधि, आदि आर्यों में प्रचलित विधियाँ और आर्यों के वर्षभर में मनाये जाने वाले पर्वों का संग्रह है।
इस पुस्तक में संस्कार विधि की व्याख्या और विशेष विवेचन सहित टिप्पणियाँ हैं। ऋत्वनुकुल हवन सामग्री बनाने का निर्देश तथा मनोहारी भजनों का संकलन हैं। यह ग्रन्थ आर्यों के लिए एक सम्पूर्ण कर्मकाण्ड, पर्वों का मार्गदर्शक ग्रन्थ सिद्ध होगा।
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