राजर्षि मनु और उनकी मनुस्मृति Rajrishi Manu aur unki Manusmriti
Description
‘मनुर्वै यत्किन्चावदत् तद् भेषजं भेषजतायै।’ (तै० सं० २.२.१०.२; ३.१.९.४)
अर्थात्- ‘मनु ने जो कुछ विधान किया है या उपदेश दिया है, वह औषध के समान कल्याणकारी है।’
मनुस्मृति की वर्णनशैली से हमें जानकारी मिलती है कि मनु अपने विधानों और आदेशों-निर्देशों का ग्रहण सीधे वेदों से करते हैं और वेद को ही परम प्रमाण मानते हैं। वेदों के अतिरिक्त मनुस्मृति में किसी मान्य शास्त्र या ग्रन्थ का उल्लेख नहीं मिलता। इसका अभिप्राय यह है कि मनुस्मृति के रचनाकाल तक उपर्युक्त साहित्य का निर्माण नहीं हुआ था। उपर्युक्त प्रमाणों से यह सिद्ध हो जाता है कि मनुस्मृति समस्त प्राचीन वाङ्मय से भी प्राचीनतर है। आंकड़ों के अनुसार वह समय क्या हो यह एक पृथक् प्रश्न है।
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