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पौराणिक पोप पर वैदिक तोप Pauranik Pop Par Vedic Top

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Description

पुस्तक का नाम – पौराणिक पोप पर वैदिक तोप
लेखक का नाम – पं. मनसारामजी “वैदिक तोप”
आर्यसमाज का प्रारम्भिक युग शास्त्रार्थों का युग था। महर्षि दयानन्द सरस्वती स्वयं बहुत बड़े तार्किक और शास्त्रार्थ – महारथः थे। उन्होंने अपने जीवन में सैकड़ों शास्त्रार्थ किये और स्वामी विशुद्धानन्दजी, पं. बालशास्त्री और हलधर ओझा जैसे कितने ही विद्वानों को चारों खाने चित्त गिराकर मिट्टी सुँघा दी।
महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के पश्चात् आर्यसमाज में शास्त्रार्थ – महारथियों की बाढ़ सी आ गयी। पं. लेखरामजी, महात्मा मुंशीरामजी, स्वामी दर्शनानन्द जी, पं. जे.पी. चौधरी, स्वामी विवेकानन्द जी, पं. बुद्धदेवजी विद्यालंकार जी, पं. लोकनाथजी तर्कवाचस्पति, पं. रामचन्द्र देहलवी जी, अमरसिंह जी आदि कितने ही शास्त्रार्थ महारथः आर्यसमाज में हुए। पं. मनसाराम जी भी अद्भुत तार्किक और शास्त्रार्थ महारथः थे।
एक समय था जब आर्यसमाज के प्रत्येक उत्सव पर शास्त्रार्थ होता था। अब वह युग समाप्त हो गया। परिणामस्वरूप नये – नये मत और पन्थ पुनः पनपने लगे हैं।
पं. मनसारामजी ने जहाँ सहस्त्रों व्याख्यान दिये, सैकड़ों शास्त्रारथ किये, वहाँ अनेक पुस्तकें भी लिखीं। आपके द्वारा लिखी छोटी और बड़ी सभी पुस्तकें बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। उन सबमें भी दो पुस्तकें विशेष हैं – पौराणिक पोलप्रकाश और पौराणिक पोप पर वैदिक तोप।
प्रस्तुत ग्रन्थ पौराणिक पोप पर वैदिक तोप उर्दू में था। यह ग्रन्थ सन् 1933 में छपा था। इसका अनुवाद स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती जी द्वारा किया गया। इस ग्रन्थ में उन्होने सभी मूल प्रमाणों को मिलाकर शुद्ध किया तथा स्थान – स्थान पर अनेकों टिप्पणियाँ देकर ग्रन्थ के गौरव को बढ़ाया। इस पुस्तक में पंडित मनसाराम जी का जिज्ञासु जी द्वारा लिखित जीवन चरित भी सम्मलित है।
पाठकगण इस पुस्तक को पढ़े, इसपर मनन और चिन्तन करें। यह ग्रन्थ पाठकों के मन और मस्तिष्क को ज्ञान – ज्योति से आपूर कर देगा। इसके अध्ययन से उन्हें वैदिक सिद्धान्तों की महत्ता और सार्वभौमिकता का ज्ञान होगा, एवं सत्य – असत्य ग्रन्थों में भेद का पता चलेगा।

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