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कर्म एवं कर्मफल मीमांसा Karma Evm Karmaphal Mimansa

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Description

इस ग्रंथ में कर्म और कर्मफल के सिद्धान्तों को वेद, दर्शन, उपनिषद तथा मनुस्मृति आदि वेदानुकूल ग्रन्थों के आधार पर प्रतिपादित किया गया है।

जीवात्मा विभिन्न योनियों में अपने कर्मफलों का भोग करता हुआ इस मानव देह में आया है जोकि एकमात्र कर्म योनि है और यहाँ वह नवीन कर्म करता है जिसके आधार पर उसे भोग और अपवर्ग दोनों की प्राप्ति होती है। अगर मानव देह में आकर भी जीव शुद्ध ज्ञान, शुद्ध कर्म और शुद्ध उपासना को न अपना सका तो उसका मानव देह में आना व्यर्थ हो जाता है। अतः शुद्ध ज्ञान, शुद्ध कर्म और शुद्ध उपासना का बहुत ही अधिक महत्व है। इन तीनों के शुद्ध स्वरूप का ज्ञान तो परमपिता परमात्मा ने वेद में दिया ही है। इसी वेद ज्ञान को प्राप्त कर ऋषियों ने इन विषयों पर अपने ज्ञान तथा अनुभव के आधार पर विभिन्न ग्रन्थों को रचा जो आज भी मानव को वेद के गम्भीर ज्ञान को समझने में सहायता प्रदान करते हैं।

इस ग्रन्थ में वेदानुकूल ऋषिप्रणीत ग्रन्थों में उपलब्ध कर्म तथा कर्मफल के सिद्धांतों को एकत्र कर उनकी तार्किक व्याख्या करते हुए उन्हें स्पष्ट किया गया है जिससे कर्म और कर्मफल की विभिन्न गुत्थियों को खोलने में सफलता मिलती है।

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