Best Book on Indian History

कर्मरहस्य Karmarahasya

185.00
30 people are viewing this right now
Estimated Delivery:
08 - 15 Nov, 2024
payment-processing
Guaranteed safe & secure checkout

Description

संसार में जन्म लेकर कोई भी प्राणी बिना कर्म किए नहीं रह सकता। कुछ कर्म तो ऐसे होते हैं जो शरीर के धर्म के रूप में उसके साथ स्वयं ही चलते रहते हैं। इन्ही कमरें को हम तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं। प्रथम है क्रियमाण कर्म यानी विवेकपूर्वक एक उत्तारदायित्वपूर्ण भावना से कार्य करना। इस रूप में किए गए कमरें का भविष्य में कोई फल नहीं मिलता। वह मात्र पूर्वजन्म में किए गए कर्र्मों का फल भोगता है। जब मनुष्य इस जन्म में कुछ फल भोग लेता है तो पिछले कमरें में से शेष बचे कमरें का फल भोगने के लिए वह अन्य योनियों में जन्म लेता है। इस प्रकार प्रत्येक जन्म का कारण पूर्वकृत कर्म होता है। मानव ऐसे कर्म जन्म से मृत्युपर्यन्त करता है जिन्हें वह शरीर के भरण-पोषण, रक्षण, व्यावसायिक व सामाजिक व्यवहार के रूप में करता है। दूसरे प्रकार के क्रियमाण कर्म मानव कर्मयोनि के रूप में करता है। ये कर्म उसकी आयु व बुद्धि के विकास के साथ-साथ बढ़ते रहते हैं और तब तक चलते रहते हैं, जब तक कि वह बुद्धि संपन्न रहता है। कर्मयोनि के रूप में जो कर्म किए जाते हैं उनका आधार पाप-पुण्य की भावना होता है। ऐसे कायरो का फल भी वर्तमान जन्म में मिलता है।

1
0