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अष्टाध्यायी भाष्य प्रथमावृति Ashtadhyayi Bhashya Prathamavriti

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Description

ग्रन्थ का नाम – अष्टाध्यायी-प्रथमावृत्ति

अनुवादक का नाम – श्री पं. ब्रह्मदत्त जिज्ञासु जी

वेदों के अर्थ में व्याकरण का अत्यन्त महत्त्व है। महर्षि पतञ्जलि ने वेदांगों में व्याकरण को मुख्य कहा है। संस्कृत भाषा के अध्ययन और संस्कृत साहित्य के अध्ययन के लिए भी संस्कृत व्याकरण का अत्यन्त महत्त्व है। संस्कृत पर अनेकों व्याकरणाचार्यों द्वारा लिखे गये अनेकों ग्रन्थ आज उपलब्ध है किन्तु इनमें से आर्ष होने से महर्षि पाणिनि का अष्टाध्यायी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है।

महर्षि दयानन्द जी ने पठन-पाठन व्यवस्था के अन्तर्गत इस ग्रन्थ के अध्ययन का विधान किया गया है। इस ग्रन्थ का महत्त्व प्राचीनकाल से ही है तथा बौद्ध चीनी यात्रियों द्वारा भी इसके महत्त्व का वर्णन किया गया है। चीनी यात्री ह्वेनसाङ्ग ने अपनी यात्रा के वृतान्त में लिखा है –

“पूर्ण मनोयोग से महर्षि पाणिनि ने शब्दभण्डार से शब्दराशि का चुनना प्रारम्भ किया। 1000 श्लोकों में सारी व्युत्पत्ति समाप्त हो गई है। प्रत्येक श्लोक 32 अक्षरों में था। इसी में ही सारी प्राचीन तथा नवीन ज्ञानराशि परिसमाप्त हो जाती है। शब्द एवं अक्षर विषयक कोई भी ज्ञान इससे शेष नहीं बचा” – ह्यूनसाङ्ग हिन्दी अनुवाद, प्रथम भाग 221

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