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श्रीमद् भगवद् गीता Shrimad Bhagwad Gita

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Description

ग्रन्थ का नाम – श्रीमद् भगवद्गीता
भाष्यकार – सत्यव्रत सिद्धान्तालङ्कार

‘गीता’ ऐसा ग्रन्थ है जो न केवल भारत अपितु विश्वभर में प्रसिद्ध है। गीता पर अनेक टीकाएँ तथा भाष्य प्राप्त होते हैं। गीता पर शंकराचार्य ने, श्री रामानुजाचार्य तथा श्री मध्वाचार्य ने अपने-अपने दृष्टिकोण से भाष्य लिखे हैं। आधुनिक युग में लोकमान्य तिलक तथा श्री अरविन्द ने गीता के सिद्धान्तों की विस्तृत शास्त्रीय विवेचना की है।
स्वामी दयानन्द जी सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश की भूमिका में गीता का श्लोक “यत्तदग्रे विषमिव परिणामेऽमृतोपमम्” को उद्धृत किया है।

इस ग्रन्थ में दो प्रकार के विचार दृष्टिगोचर होते हैं – (1) सैद्धान्तिक (2) व्यवहारिक
सैद्धान्तिक दृष्टि में गीता में ‘सांख्य’-‘योग’-‘वेदान्त’ इन तीन दार्शनिक आधारों के विचार प्राप्त होते है। सांख्य और योग के सम्बन्ध में गीता में ‘ज्ञानयोगेन सांख्यानाम् कर्मयोगेन योगिनाम्’ तथा ‘अन्ये सांख्येन योगेन’ आदि श्लोक प्राप्त होते है। इन सब स्थलों में सांख्य तथा योग का सिद्धान्त रूप में वर्णन है।
वेदान्त के सम्बन्ध में गीता में ‘वेदान्तकृद् वेदविदेव चाहम्’ और ‘ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव’ श्लोक प्राप्त होते है।
व्यवहारिक दृष्टि से गीता में कर्तव्य-अकर्तव्य पर विचार विमर्श किया है। क्या उचित है और क्या अनुचित? इन सब व्यवहारिक और नैतिक पक्षों पर विचार विमर्श प्राप्त होते है।
व्यवहारिक समस्या का हल करने के लिए गीता ने जिस नवीन तथा अद्भुत विचार को जन्म दिया उसने ‘निष्कामता’, ‘निस्संगता’, ‘फलासक्ति त्याग’, ‘निमित्तमात्रता’, ‘भगवदर्पणता’ का नाम दिया है। इसी विचार को केन्द्र में रख कर गीता ने सब पारमार्थिक का आश्रय लिया है।

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