सामवेद Samveda

Description
वेदों में सामवेद को उपासना विषय में प्रमुख माना गया है। यह षडाजादि स्वरों सहित संगीतबद्ध है, महर्षि जैमिनि ने भी गीतेषु सामाख्या द्वारा साम को गीतबद्ध रचना कहा है। सामवेद का महिमागायन करते हुए कृष्ण ने स्वयं को वेदों में सामवेद कहा है।
यह वेद चारों वेदों में आकार की दृष्टि से लघु है। इसमें परमात्मा की विभिन्न नामों जैसे – इन्द्र, अग्नि, वायु, वरुण, सविता, आदित्य, विष्णु आदि नामों से स्तुति है। मनुष्य योगादि द्वारा ईश्वर उपासना कर, कैसे लौकिक, पारलौकिक सुःख प्राप्त करें यह सब इस वेद में वर्णित है। सामवेद द्वारा गायन विद्या प्रकट हुई है तथा प्राचीन भारत में वामदेव गान, ग्राम गान, अरण्यगान आदि सामवेद द्वारा ही प्रस्फुटित हुआ है। स्वामी दयानन्द का आदेश है कि हमें यज्ञ, संस्कार आदि सभी मंगल कार्यों की समाप्ति पर सामवेदोक्त मन्त्रों का संगीतमय गान कर परमात्मा के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए।
सामवेद पर दुर्भाग्य से महर्षि दयानन्द जी भाष्य न कर सके, किन्तु उन्हीं की शैली का अनुसरण करते हुए रामनाथ वेदालङ्कार जी ने यह भाष्य किया है। इस भाष्य में मन्त्र-मन्त्र में, पद्य-पद्य में ऋषि दयानन्द के भावों को प्रतिष्ठित किया गया है। यह भाष्य सरल है, व्याकरण के अनुकूल है और गौरवपूर्ण है। इसे पढकर पाठक को वेद के महत्व और गुण-गरिमा का ज्ञान होगा। इस वेद-भाष्य में गहराई तक उतरने का प्रयत्न किया गया है।
अतः वेद-सागर में गोते लगाने और वेद शिक्षाओं को जीवन में धारण करने के लिए इस वेद का अवश्य ही अध्ययन करना चाहिए।
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Swami Dayanand Sarawati
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