Vedic Books

योगदर्शनम् Yogdarshanam

300.00
20 people are viewing this right now
Estimated Delivery:
14 - 21 Jun, 2025
payment-processing
Guaranteed safe & secure checkout

Description

ग्रन्थ का नाम – योगदर्शन

भाष्यकार – आचार्य उदयवीर जी शास्त्री

 

योगदर्शन महर्षि पतञ्जलि की रचना है। इस ग्रन्थ के चार पाद हैं। सूत्रों की संख्या 194 है।

 

योग शब्द के अनेक अर्थ हैं। युजिर् योगे से योग का अर्थ होगा मिलाने वाला अर्थात् जिसके द्वारा आत्मा को परमात्मा का ज्ञान मिल जाए या परमानन्द प्राप्त हो, उसे योग कहते हैं। योग शब्द युज् समाधौ से भी सिद्ध होता है जिसका अर्थ कि केवल ध्येय अर्थात् परमात्मा का ही भान हो।

 

जिस प्रकार से चिकित्सा शास्त्र में चार व्यूह हैं जैसे – रोग, रोग हैतु, आरोग्य और औषध। इसी प्रकार से योग शास्त्र के भी चार व्यूह है – संसार, संसार हैतु, मोक्ष, मोक्षोपाय। इस दर्शन में क्लेशों से मुक्ति पाने और चित्त को समाहित करने के लिए, योग के आठ अङ्गों के अभ्यास का प्रतिपादन किया गया है जो निम्न प्रकार है –

 

१. यम – यह पाँच माने गये हैं – अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह।

1
0