Best Book on Indian History

संस्कार विधि Sanskar Vidhi

125.00
24 people are viewing this right now
Estimated Delivery:
12 - 19 Dec, 2024
payment-processing
Guaranteed safe & secure checkout

Description

पुस्तक का नाम – संस्कार विधि

लेखक – महर्षि दयानन्द सरस्वती

 

कौन व्यक्ति कैसा है? उसकी सही पहचान उसके रङ्ग, रूप, कुल से न होकर वरन् उसके संस्कारों से होती है। संस्कार विहीन व्यक्ति उच्च कुल में जन्म लेकर भी कुलीनता पर व्यङ्ग ही होता है। अतः सभी को अपने जीवन में संस्कारों को स्थान देना चाहिए।

व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए, हमारे महर्षियों ने सौलह संस्कारों का वेदानुसार विधान किया था किन्तु आज भारत में अपने संस्कारित विधान होते हुए भी लोग पाश्चात्य संस्कृति या फिर डार्विन के सिद्धान्तों की ओर जा रहे हैं। लोग स्वयं को शक्तिशाली बनाने और दिखाने में, स्वयं को अधिक आधुनिक दिखाने में ही जीवन की सच्चाई मान बैठे हैं। जहाँ हमने तिनका-तिनका जोडकर परिवार बनाया था वहीं अब बिखरने पर उतारू हो गए है। कल जहाँ व्यक्तित्व विकास के साधन थे, अब वह शारीरिक प्रदर्शन मात्र रह गया है। वेशभूषादि शालीनता की निशानी थी वहीं विद्रोहता की निशानी बनती जा रही है। इसलिए आज ऋषियों के द्वारा निर्धारित संस्कारों की पुनः आवश्यकता है, क्योंकि यदि हम अपने संस्कारों की ओर नहीं लोटे तो हमारा जीवन पशुवत् हो जाएगा।

आर्य जाति में अपने संस्कारों की शिथिलता को देखते हुए, इस जाति के पुनरुत्थापनार्थ ऋषि दयानन्द जी ने संस्कार विधि नामक अलौकिक ग्रन्थ की रचना का उपक्रम किया। इस ग्रन्थ की स्वलिखित भूमिका में ग्रन्थ रचना का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए स्वामी जी लिखते है – “जिन के द्वारा शरीर और आत्मा सुसंस्कृत होने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त हो सकते हैं और सन्तान अत्यन्त योग्य होते हैं, इसलिए संस्कारों का करना सब मनुष्यों को अति उचित है।”

1
0